भारत का तेल बाजार विभाजित, सरकारी रिफाइनरियां रूसी कच्चे तेल में कटौती कर रही हैं और निजी कंपनियां खरीद बढ़ा रही हैं

 

भारत की तेल रिफाइनरी का दृश्य
भारत की तेल रिफाइनरी का दृश्य

भारत का तेल बाज़ार बंटा – सरकारी कंपनियां घटा रहीं रूसी तेल की खरीद, निजी कंपनियां बढ़ा रहीं आयात

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है। हमारी ऊर्जा ज़रूरतों का ज़्यादातर हिस्सा विदेशों से आता है। ऐसे में जब भी कच्चे तेल की कीमतों या सप्लाई में बदलाव होता है, तो उसका सीधा असर भारत की अर्थव्यवस्था और आम लोगों की जेब पर पड़ता है।

रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद हालात ऐसे बने कि रूस भारत का सबसे बड़ा सप्लायर बन गया। वजह साफ थी – रूस भारत को तेल सस्ते दामों पर बेच रहा था। लेकिन अब तस्वीर बदलती नज़र आ रही है।

ताज़ा रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत का तेल बाज़ार दो हिस्सों में बंटता दिख रहा है। सरकारी रिफाइनरियां जैसे इंडियन ऑयल, एचपीसीएल और बीपीसीएल रूस से खरीद कम कर रही हैं, जबकि निजी कंपनियां – खासतौर पर रिलायंस और नायरा एनर्जी – रूसी तेल की खरीद तेजी से बढ़ा रही हैं।

सरकारी कंपनियां क्यों पीछे हट रही हैं?

सरकारी कंपनियां कई वजहों से रूसी तेल पर अपनी निर्भरता घटा रही हैं।

1. पेमेंट की दिक्कतें – डॉलर में लेन-देन पर पाबंदियों के कारण भुगतान करना मुश्किल हो गया है। सरकारी कंपनियां इस जोखिम से बचना चाहती हैं।

2. राजनीतिक दबाव – भारत अमेरिका और यूरोप दोनों के साथ संबंध बिगाड़ना नहीं चाहता। सरकारी कंपनियां सीधे सरकार के अधीन होती हैं, इसलिए वे ज़्यादा सतर्क रहती हैं।

3. पुराने अनुबंध – खाड़ी देशों से लंबे समय के कॉन्ट्रैक्ट पहले से हैं, जिन्हें नज़रअंदाज़ करना आसान नहीं।

4. ट्रांसपोर्ट का झंझट – रूस से तेल लाने में दूरी और खर्च दोनों ज़्यादा हैं, जबकि खाड़ी देश पास में हैं।

निजी कंपनियों का रूसी तेल पर दांव

रिलायंस और नायरा जैसी निजी कंपनियां बिल्कुल उलटा कर रही हैं। वे रूस से खूब तेल खरीद रही हैं। क्यों?

1. सस्ता सौदा – रूसी तेल बाकी देशों के मुकाबले सस्ता है।

2. निर्यात का फायदा – ये कंपनियां तेल को प्रोसेस करके यूरोप और एशिया में महंगे दामों पर बेचती हैं।

3. कम दबाव – निजी कंपनियों पर अंतरराष्ट्रीय राजनीति का सीधा असर नहीं पड़ता।

4. तेज़ फैसले – वे तुरंत अवसर भुना लेती हैं, सरकारी कंपनियों की तरह लम्बी प्रक्रियाओं में नहीं फंसतीं।

भारत पर इसका असर

अब सवाल है – इस बंटवारे का भारत पर क्या असर होगा?

1. ऊर्जा सुरक्षा बनी रहेगी – सरकारी कंपनियां खाड़ी देशों से तेल लेती रहेंगी, जिससे सप्लाई का संतुलन रहेगा।

2. निजी कंपनियों का मुनाफा – रिलायंस और नायरा जैसी कंपनियां सस्ते तेल से अरबों का मुनाफा कमा रही हैं।

3. राजनीतिक संतुलन – भारत एक तरफ रूस से फायदा ले रहा है और दूसरी तरफ पश्चिमी देशों को नाराज़ भी नहीं कर रहा।

4. घरेलू कीमतों पर असर – मज़ेदार बात ये है कि निजी कंपनियों का फायदा सीधे पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों में नहीं दिखता, क्योंकि वे ज़्यादातर उत्पाद बाहर बेचती हैं।

आगे क्या हो सकता है?

1. रूस पर पश्चिमी दबाव और बढ़ सकता है, जिससे भारत के लिए खरीदना मुश्किल हो सकता है।

2. सरकारी कंपनियां हमेशा की तरह सुरक्षित खेलेंगी और विविध सप्लायर बनाए रखेंगी।

3. निजी कंपनियां मौके का फायदा उठाती रहेंगी।

4. लंबी अवधि में भारत नवीकरणीय ऊर्जा पर निवेश बढ़ाएगा ताकि आयात पर निर्भरता घटाई जा सके।

नतीजा

कुल मिलाकर, भारत का तेल बाज़ार अभी दो हिस्सों में बंटा हुआ है। सरकारी कंपनियां सावधानी से चल रही हैं, जबकि निजी कंपनियां रूसी तेल से मुनाफे का खेल खेल रही हैं। यह स्थिति भारत की संतुलित विदेश नीति को भी दर्शाती है – न रूस को छोड़ सकते हैं, न अमेरिका-यूरोप को नाराज़ कर सकते हैं।

आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि रूस-यूक्रेन युद्ध और पश्चिमी पाबंदियां भारत की इस "दोहरी रणनीति" को किस तरह प्रभावित करती हैं।

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